Special Lal Kitab in Hindi | Lal Kitab Remedies- लाल किताब
आज आप जानेंगे Lal Kitab in Hindi. आशा करते हैं, आपको आजकी हमारी यह Lal Kitab Remedies पसन्द आएगी, तो चलिए शुरू हैं।
Lal Kitab रहस्यों से भरा हुआ है, इन्हें समझने के लिए पहले हमें इसके भूतकाल को समझना आवश्यक है।
Lal Kitab
” लाल किताब का रहस्य “
लाल किताब के बारे में कई मान्यताएं हैं, जो कि समाज में शुभ -अशुभ के प्रभाव को बताती है।
हमारे निजी जीवन में हम कामों को उसकी कुशलता से होने का प्रयास करते हैं, और कार्यों को करने के लिए जो तरीके होते हैं वो हमें लाल किताब से पता चलते है।
दरअसल लाल किताब का इतिहास बहुत पुराना है, कहा जाता है कि लंकाधिपति रावण ने सूर्य के सारथी, अरुण से यह विद्या प्राप्त की थी।
रावण का समय समाप्त होने के पश्चात यह ग्रंथ “आद” नामक स्थान पर पहुँच गया, जहां इसका अनुवाद फारसी और अरबी भाषा में हुआ ।
आज भी यह मन जाता है कि यह किताब फ़ारसी भाषा में उपलब्ध है।
यह ग्रंथ आजकल भी पाकिस्तान के किसी पुस्तकालय में सुरक्षित है, और उर्दू भाषा में है। परंतु इस ग्रंथ का “अरुण संहिता” या फिर लाल किताब से विख्यात अंश गायब था।
माना जाता है कि एक बार लाहौर में जमीन खुदाई के समय, तांबे की पट्टिकाएं मिली जिन पर उर्दू और अरबी भाषा में लाल किताब लिखी मिली।
फिर यह प्रकाशित की गई और तभी से यह प्रसिद्ध हो गयी।
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Lal Kitab Remedies
‘किस्मत का ताला प्रेरक वचन’
◆ “जिस प्रकार मछली देख-रेख से, चोंच द्वारा सदैव अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है, वैसे ही अच्छे लोगोँ के साथ से सर्व प्रकार से रक्षा होती है”
अर्थात अच्छे लोगों के साथ रहने से सदैव हमारे साथ अच्छा ही होता है, अच्छे लोग हमेशा अच्छी अच्छी बातें सिखाते हैं और हर प्रकार की बुराई से हमारी रक्षा होती है।
◆ “यह नश्वर शरीर जब तक निरोग व स्वस्थ है या जब तक मृत्यु नहीं आती, तब तक मनुष्य को अपने सभी पुण्य-कर्म कर लेने चाहिए क्योँकि अंत समय आने पर वह क्या कर पाएगा।”
अर्थात | Lal Kitab – सभी लोगों को अपने जीवन में पुण्य करते रहने चाहिए, कहा भी जाता है कि मनुष्य को अपने जीवन मे ही अपने कर्मों का फल मिल जाता है वो जैसा करता है वैसा ही भरता है।
अगर किसी मनुष्य ने जीवन में पूण्य नहीं किये तो अंतिम समय में उसे आभास होता है कि इसने तो जीवन में तो कुछ अच्छे कर्म किये ही नहीं अब जरूर उसे स्वर्ग का सुख नही मिल सकेगा। अतः सभी को पूण्य कर्म करने चाहिए।
◆ ” तपस्या अकेले में, अध्ययन दो के साथ, गाना तीन के साथ, यात्रा चार के साथ, खेती पांच के साथ और युद्ध बहुत से सहायको के साथ होने पर ही उत्तम होता है।”
अर्थात | Lal Kitab Kundli – तपस्या का फल अकेले करने मे अधिक शीघ्रता से मिलता है, अध्ययन जैसी चीजों को किसी साथी के साथ करने में ज़्यादा जल्दी समझ मे आता और उसका फल जल्द प्राप्त होता है।
और युद्ध बहुत से साथियों के साथ करने में जीत सुनिश्चित होती है। तातपर्य यह है कि कुछ कार्य अकेले और कुछ कार्य मित्रों के साथ ही सम्पूर्ण तथा फलदाई होते हैं।
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◆ “तप में असीम शक्ति है। तप के द्वारा सभी कुछ प्राप्त किया जा सकता है। जो दूर है, बहुत अधिक दूर है, जो बहुत कठिनता से प्राप्त होने वाला है और बहुत दूरी पर स्थित है, ऐसे साध्य को तपस्या के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। अतः जीवन में साधना का विशेष महत्व है। इसके द्वारा ही मनोवांछित सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।”
अर्थात | Lal Kitab Remedies – किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कठोर मेहनत करनी पड़ती है। बिना मेहनत के कुछ पाना संभव नहीं है। जिसको हम साधना कहते हैं। किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए उसके प्रति साधना आवश्यक है।
◆ ” हाथ की शोभा दान से होती है, न की कंगन पहनने से, शरीर की शुद्धि स्नान से होती है, न की चन्दन लगाने से, बड़ो की तृप्ति सम्मान करने से होती है, न कि भोजन कराने से, शरीर की मुक्ति ज्ञान से होती है, न की शरीर का शृंगार करने से।
अर्थात | Lal Kitab Kundli – वो हाथ जिसने कभी कोई काम या कोई दान नहीं किया तो वो हाथ पवित्र नहीं हैं ऐसे हाथों का श्रृंगार किसी काम का नहीं, शरीर की शुद्धता कर्म कांडों से नही होती बल्कि स्नान से होती है,
बुजुर्गों को केवल सम्मान की भूख होती है न कि भोजन की, अतः हमें बाहरी दिखावों से दूर ही रहना चाहिए।
◆ “मनुष्य का आचरण-व्यवहार उसके खानदान को बताता है, भाषण अर्थात उसकी बोली से देश का पता चलता है, विशेष आदर सत्कार से उसके प्रेम भाव का तथा उसके शरीर से भोजन का पता चलता है।”
अर्थात | Lal Kitab – मनुष्य का अपना आचरण, आचार-विचार सब उसके परिवार और उसके संस्कार का दर्पण होता है। वही उसके समाज और परिवेश को दर्शाता है। सही संस्कार एक सभ्य व्यक्ति का निर्माण करता है और सभ्य व्यक्ति ही सभ्य समाज का निर्माण करने में सक्षम होता है।
◆ “जिस प्रकार घिसने, काटने, आग में तापने-पीटने, इन चार उपायो से सोने की परख की जाती है, वैसे ही त्याग, शील, गुण और कर्म, इन चारों से मनुष्य की पहचान होती है।”
अर्थात | Lal Kitab Kismat Ka Tala – जिस प्रकार सोने को खरा बनाने के लिए उसे तपना पड़ता है उसी प्रकार त्याग, शालीनता जैसे गुणों को अपनाकर कोई भी मनुष्य सोने की तरह खरा बनता है और अपनी शोभा बढ़ाता है।
◆ “जिसका जिस वस्तु से लगाव नहीं है, उस वस्तु का वह अधिकारी नहीं है। यदि कोई व्यक्ति सौंदर्य प्रेमी नहीं होगा तो श्रृंगार शोभा के प्रति उसकी आसक्ति नहीं होगी।
मूर्ख व्यक्ति प्रिय और मधुर वचन नहीं बोल पाता और स्पष्ट वक्ता कभी धोखेबाज, धूर्त या मक्कार नहीं होता।”
अर्थात | Lal Kitab Kismat Ka Tala – जो चीज जिसकी है अथवा जिस व्यक्ति को जो काम अच्छी तरह से आता है उसको वही कार्य करना शोभा देता है, कहा भी जाता है जिसका काम उसी को साझे! वैसे ही यदि बिना प्रेम के बिना हम किसी वस्तु को ग्रहण करते हैं तो वह हमारे लिए मूल्यवान नहीं रहती।
◆ “ब्रह्मज्ञानियो की दॄष्टि में स्वर्ग तिनके के समान है, शूरवीर की दॄष्टि में जीवन तिनके के समान है, इंद्रजीत के लिए स्त्री तिनके के समान है और जिसे किसी भी वस्तु की कामना नहीं है, उसकी दॄष्टि में यह सारा संसार क्षणभंगुर दिखाई देता है। वह तत्व ज्ञानी हो जाता है।”
अर्थात | Lal Kitab – सब सोचने की क्षमता पर निर्भर करता है, उदाहरण के लिए हम चींटी और हाथी को ले लेते हैं चींटी हाथी के सम्मुख कुछ नहीं है, इसके विपरीत चींटी के लिए हाथी बहुत विशाल जीव है।
लेकिन वह फिर भी हाथी के नाक में दम करने की क्षमता रखती है। तातपर्य यह है कि हम सभी को केवल ज्ञान होना चाहिए हम किसी परीक्षा को उत्तीर्ण कर सकते हैं।
◆ “सफल व्यक्ति वही है जो बगुले के समान अपनी सम्पूर्ण इन्द्रियों को संयम में रखकर अपना शिकार करता है। उसी के अनुसार देश, काल और अपनी सामर्थ्य को अच्छी प्रकार से समझकर सभी कार्यो को करना चाहिए।
बगुले से यह एक गुण ग्रहण करना चाहिए, अर्थात एकाग्रता के साथ अपना कार्य करे तो सफलता अवश्य प्राप्त होगी, अर्थात कार्य को करते वक्त अपना सारा ध्यान उसी कार्य की और लगाना चाहिए, तभी सफलता मिलेगी।
अर्थात सफलता पाने के लिए संयम , कर्तव्यनिष्ठता, एकाग्रता, ध्यानकेन्द्रता आदि अत्यधिक आवश्यक है।
Lal Kitab Story
एक बार एक गुरुकुल में एक विद्वान महात्मा थे। जब वह बूढ़े होने लगे तो उन्होंने सोचा कि वे गुप्त विद्याएँ, जिन्हें सिर्फ वही जानते है, कुछ भरोसेमंद शिष्यों को सिखा देनी चाहिए।
उन्हीं गुप्त विद्याओं में से एक थी लोहे से सोना बनाने की विद्या। यह विद्या उन्होंने अपने एक भरोसेमंद शिष्य को सिखाने की सोची, गुरुजी ने उसे शाम को अपनी कुटिया पर बुलाया और अपने साथ उसे लोहा लाने को कहा।
शिष्य ने मां में कुछ सोचा, वह समझ गया कि उसे गुरुजी कुछ गूढ़ विद्या सिखाने वाले हैं। उसे लगा कहीं गुरुजी यह किसी और को भी न सिखा दें, इसलिए उसने विद्या सीखने के बाद गुरुजी को मार डालने का निश्चय किया।
शाम को शिष्य लोहा लेकर गुरुजी की कुटिया में पहुंचा। शिष्य को पता था कि गुरूजी की पत्नी उसे गुरूजी के साथ भोजन के लिए जरूर आमंत्रित करेंगी।
गुरुजी ने शिष्य को लोहे से सोना बनाना सिखा दिया। इस बीच शिष्य किसी बहाने से उठा और रसोईघर में जाकर गुरुजी के खाने में जहर मिला आया ।
उसने गुरुजी की थाली में जहर और खाने को इस तरह उलट-पुलट कर दिया जिससे वह थाली अलग से पहचान में आ जाये। इसी बीच गुरूजी की पत्नी आई और उन्होंने थाली को फिर से व्यवस्थित कर दिया और दोनों थाली सजा दी।
शिष्य पहचान नहीं पाया कि वह कौनसी थाली थी जिसमें वह जहर मिलाकर आया था। उसने अफरा तफरी में गुरूजी वाली थाली को ही अपनी थाली समझकर खाना शुरू कर दिया। गुरुजी भी कहना खाने लग गए।
भोजन करने के कुछ समय के बाद ही वह अचेत हो गया। गुरुजी व उनकी पत्नी घबरा गए एयर जल्द से उसे खाली जगह में लेटाया ।
गुरुजी ने तत्काल जड़ी -बूटी से उसका उपचार करा उसे कुछ देर में ही होश आया गया और गुरुजी ने उसे स्वस्थ कर दिया । होश में आने के बाद वह जोर-जोर से रोने लगा और गुरुजी को सारी बात बता दी ।
गुरुजी बहुत दुःखी हुए और उन्होंने कहा, ‘लगता है मेरी ही शिक्षा में, कोई चूक रह गई तभी तो मैं तुम्हारे भीतर श्रेष्ठ भाव नहीं भर सका। ‘
वह पश्चाताप करने लगे । इसी पर शिष्य ने कहा, ”नहीं, गुरुजी! आपकी शिक्षा में कोई कमी नहीं है । अगर ऐसा होता तो मैं अपनी गलती स्वीकार ही क्यों करता ।
मुझे प्रायश्चित करने दे । मैं ने आज यह फैसला किया है कि मैं इस विद्या का कभी उपयोग नहीं करूंगा।”
Conclusion
आज आपने जानी Lal Kitab Kismat Ka Tala के बारे में बहुत सारे रहस्य। उम्मीद करते हैं, आपको आज की हमारी यह Lal Kitab Remedies (Kundli) पसन्द आई।
ऐसी और रोचक जानकारी प्राप्त करने के लिए बने रहिए, sarkaariexam के साथ।
thanks